नवरात्रि में ही कन्या पूजन क्यों? जानें 2 से 10 साल तक की बच्चियों को भोजन कराने का महत्व
नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्व बताया गया है. नवरात्रि के दौरान कन्या पूजन करने का विशेष महत्व होता है. कन्या पूजन का महत्व प्राचीन शास्त्रों में उल्लेखित है. मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम के ज्योतिषाचार्य पंडित पंकज पाठक ने लोकल 18 को जानकारी देते हुए बताया कि नवरात्रि में कन्या पूजन एक प्राचीन कथा से जुड़ा हुआ है.
शास्त्रों में बताया गया कि इंद्रदेव ने माता दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए उनसे उपाय पूछा था. उन्हें ब्रह्मा देव ने सुझाव में कुंवारी कन्याओं का भोजन के साथ पूजन करना बताया था. इसके साथ ही 2 साल से 10 साल तक की कन्याओं का पूजन किया जाता है. आखिर क्यों 2 से 10 साल तक की कन्याओं को ही नवरात्रि में शामिल किया जाता है. इसका भी एक अलग ही महत्व है. तो जानते हैं कि प्राचीन शास्त्रों में कन्या पूजन का क्या महत्व बताया गया है.
कन्या पूजन का इतिहास
प्राचीन कथा में बताया गया है कि एक गरीब पंडित श्रीधर नवरात्रि के दौरान पूरे गांव को भोजन करना चाहता था. लेकिन, वह काफी गरीब था. इसके कारण वह सोच में डूब गया कि किस प्रकार में पूरे गांव को नवरात्रि में भोजन पर बुला सकता हूं. पंडित श्रीधर माता का बहुत बड़ा भक्त हुआ करता था. उसने माता से हाथ जोड़कर पूरे गांव को भोजन करने की बात कही फिर माता ने कन्या के रूप में आकर पंडित श्रीधर से कहा कि तुम्हारी यह इच्छा पूरी होगी. तुम पूरे गांव को भोजन पर बुलाओ माता तुम्हारे भोजन कक्ष में सभी व्यवस्थाएं करेंगी और श्रीधर ने कन्या की बात मानकर पूरे गांव को बुलाकर भोजन कराया. फिर माता की कृपा से उसे शुभ समृद्धि की प्राप्ति हुई.
कन्या पूजन करने का दिन और महत्व जानिए
नवरात्रि के दौरान कन्या पूजन करने का विशेष महत्व बताया गया है. लेकिन, अष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन का महत्व और बढ़ जाता है. इन दिनों कन्याओं को पूजन कर उन्हें भोजन करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं. भक्तों को अपना आशीर्वाद प्रदान करती हैं. शास्त्रों में बताया गया कि माता दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए कन्या पूजन करना बहुत ही शुभ माना गया है. कन्याओं की पूजन करने से माता मां दुर्गा की कृपा हमेशा बनी रहती है, इसलिए नवरात्रि में कन्या पूजन करने का विशेष महत्व माना गया है.
कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त
दुर्गा अष्टमी के दिन हमें सुबह मां महागौरी की पूजा करनी चाहिए. इसके बाद आप अष्टमी को हवन करते है तो हवन करने के बाद कन्या पूजन कीजिये. उस दिन पुष्य नक्षत्र और धृति योग बना हुआ है. उस दिन का अभिजीत मुहूर्त AM से PMतक है. महानवमी के दिन मां सिद्धिदात्री और भगवान राम की पूजा करें. उसके बाद हवन करके कन्या पूजा करें. महानवमी को पूरे दिन रवि योग बना हुआ है. इसके साथ ही कन्या पूजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें गिफ्ट दे सकते हैं. जैसे- पेन, बालों की चिमटी, छोटे-छोटे खिलौने और भी अपने अनुसार जो बच्चों को अधिक पसंद है.
2 से 10 साल की कन्या का महत्व
शास्त्रों में कन्या पूजन को लेकर विशेष महत्व बताया गया है. 2 से 10 साल की कन्याओं का अपनी आयु अनुसार अलग-अलग महत्व बताया गया है. पंडित पंकज पाठक ने इन कन्याओं की आयु अनुसार महत्व बताया. जानिए शास्त्रों में कन्या की आयु अनुसार क्या बताया गया है.
1. 2 वर्ष की कन्या को कुमारी कहा जाता है. नवरात्रि में 2 वर्ष की कन्या की पूजन करने और उसे भोजन करने से दुख दरिद्रता खत्म होती है. साथ ही हमें सुख शांति की प्राप्ति होती है.
2. 3 वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति कहा जाता है. नवरात्रि के दौरान 3 वर्ष की कन्या की पूजन करना और उसे भोजन कराने से धन-धान्य का आगमन होता है. साथ ही परिवार का कल्याण होता है.
3. 4 वर्ष की कन्या को कल्याणी कहा जाता है. 4 वर्ष की कन्या का नवरात्रि में पूजन करने और भोजन करने से शुभ समृद्धि की प्राप्ति होती है.
4. 5 वर्ष की कन्या को रोहिणी कहा जाता है. 5 वर्ष की कन्या को नवरात्रि में भोजन कराना और पूजन करने से व्यक्ति को रोगों से मुक्ति मिलती है.
5. 6 वर्ष की कन्या को कालिका कहा जाता है. 6 वर्ष की कन्या को नवरात्रि के दौरान पूजन करना और उसे भोजन कराने से विद्या और राजयोग की प्राप्ति होती है.
6. 7 वर्ष की कन्या को चंडिका कहा जाता है. 7 वर्ष की कन्या का नवरात्रि में पूजन करना और उसे भोजन कराने से ऐश्वर्या की प्राप्ति होती है.
7. 8 वर्ष की कन्या को शांभवी कहा जाता है. नवरात्रि के समय 8 वर्ष की कन्या को भोजन कराने तथा पूजन करने से हमें लोकप्रियता की प्राप्ति होती है.
8. 9 वर्ष की कन्या को दुर्गा कहा जाता है. नवरात्रि के दौरान 9 वर्ष की कन्या का पूजन करने से शत्रु विजय और असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं.
9. 10 वर्ष की कन्या को सुभद्रा कहा जाता है. नवरात्रि के समय 10 वर्ष की कन्या का पूजन करना और उसे भोजन कराने से मनोरथ पूर्ण होते हैं और सुख मिलता है.