1206 हैक्टेयर में बनेगा डीआरडीओ का परीक्षण केंद्र
श्योपुर । भारतीय रक्षा प्रणाली को मजबूत करने के साथ ही आम जन के लिए हितकारी प्रयोग सहित अन्य क्षमताओं का परीक्षण करने के लिए श्योपुर में बन रही भारतीय रक्षा अनुसंधान संगठन की राष्ट्रीय इकाई अब आकार लेने लगी है। 1206 हैक्टेयर में बन रही इस प्रयोगशाला और परीक्षण केन्द्र की बाउंड्री बनने लगी है और अगले सप्ताह निरीक्षण होने की संभावना है। सूत्र बताते हैं कि रक्षा आयुधों को लेकर वर्ष के आखिर तक यहां टैस्टिंग का काम शुरू हो सकता है।
दरअसल डीआरडीओ हैदराबाद की एक यूनिट श्योपुर जिले की बड़ौदा तहसील और ग्वालियर जिले की मोहना नगर पंचायत क्षेत्र में बनाने के लिए कुछ वर्ष पहले स्वीकृति दी गई थी। रक्षा संबंधी उपकरण सहित अन्य उपयोगी उपकरण बनाने के लिए स्थापित होने वाली लैब के लिए जमीन आवंटन हो चुका है। अब यहां निर्माण कार्य शुरू किए जा रहे हैं। इससे पहले आवंटित भूमि को बाउड्री बनाकर सुरक्षित किया जा रहा है। इसके बाद अन्य निर्माण कार्य होंगे।
होंगे प्रयोग और टैस्टिंग
देश और आम जन की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली डीआरडीओ प्रयोगशालाओं में मोहना और श्योपुर का स्थान भी महत्वपूर्ण रहेगा। निर्माण पूरा होने के बाद यह पूरा क्षेत्र विशेष संवेदनशील क्षेत्रों में शामिल रहेगा। इसके साथ ही आसपास होने वाले अवैध उत्खनन पर अपने आप लगाम लग सकेगी। प्रयोगशालाओं में आयुध प्रणाली से जुड़े महत्वपूर्ण कल-पुर्जों का निर्माण होगा।
यह हुआ अब तक
श्योपुर जिले के बड़ौदा क्षेत्र के जाखदा जागीर में आवंटित 1206 हैक्टेयर जगह में बाउंड्री बन रही है। डीआरडीओ के अधिकारी लगातार मॉनीटरिंग कर रहे हैं। अगले सप्ताह काम की प्रगति को लेकर समीक्षा होगी। डीआरडीओ के अधिकारियों ने जिला प्रशासन से प्रयोगशाला के लिए अप्रोच बनवाने के लिए अनुरोध किया है। मोहना नगर पंचायत से लगे क्षेत्र उम्मेदगढ़ गांव के पास 100 हैक्टेयर जगह में काम शुरू हो रहा है। यहां भी बाउंड्री बनाने का काम शुरू किया जा चुका है। जिला प्रशासन के अधिकारी यहां की निगरानी करने के लिए लगातार विजिट कर रहे हैं। आसपास होने वाले अवैध उत्खनन पर लगाम लगाने के लिए भी कार्रवाई की जा रही है।
क्षेत्र की प्रगति में सहायक होगी लैब
जिले के सीमांत क्षेत्र में प्रयोगशाला का निर्माण होने से बड़ौदा तहसील मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित जाखदा जागीर में प्रयोगशाला निर्माण होने के बाद निवेश बढऩे की संभावना रहेगी। जंगल में बसे सुदूर गांवों में खेती के साथ-साथ वनोपज से संबंधित लघु उद्योग इकाइयों की स्थापना के अवसर बढ़ेंगे।