आदिवासियों की मान्यता है कि जंगल में आग लगाने से बन जाते हैं बिगड़े काम

भोपाल । अंधविश्वास की आग इन दिनों देश के अति महत्वाकांक्षी चीता प्रोजेक्ट के लिए खतरा बनी हुई है। इसके पीछे आदिवासियों की एक ऐसी परंपरा है, जिसने कूनो नेशनल पार्क प्रबंधन को चिंता में डाल दिया है। दरअसल, मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क के आसपास स्थित गांवों में रहने वाले आदिवासियों की मान्यता है कि जंगल में आग लगाने से उनके बिगड़े काम बन जाते हैं। यह अंधविश्वास इतना प्रबल है कि इस बार कूनो नेशनल पार्क में अन्य नेशनल पार्कों और अभयारण्यों के मुकाबले ज्यादा बार आग लगने की घटनाएं हुई हैं। यह घटनाएं उन क्षेत्रों में भी हुई हैं, जहां नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए चीतों को रखा गया है। कूनो प्रबंधन को इस क्षेत्र से आए दिन फायर अलार्म मिल रहे हैं। इसके चलते कूनो के अलग-अलग हिस्सों में फायर वाचर सहित वनरक्षकों को निगरानी के लिए लगाया गया है। कूनो प्रबंधन का कहना है कि जंगल में आगजनी की घटनाएं रोकने के लिए पहले आठ सौ वर्ग किमी की फायर लाइन काटी जाती थी इस बार इसका दायरा 2000 वर्ग किमी किला किया गया है। फायर लाइन की चौड़ाई को बढ़ाकर 12 मीटर कर दिया गया है। अभी तक तीन बार बड़ी आग और छोटी आग की घटनाएं आए दिन हो रही हैं।
बता दें कि देश में चीतों की धरती कूनो नेशनल पार्क में वर्तमान में 14 चीता शावक और 13 व्यस्क चीते हैं। दो चीते खुले जंगल में घूम रहे हैं और शेष सभी को बड़े बाड़ों में रखा गया है। हाल ही में चीता स्टीयरिंग कमेटी के सदस्यों ने कूनो नेशनल पार्क में चीतों से संबंधित व्यवस्थाओं को देखा था और जल्द और चीतों को खुले जंगल में छोडऩे पर सहमति भी जताई थी।

समझाइश ही एकमात्र रास्ता, वह भी असफल


अंधविश्वास की इस आग से चिंतित कूनो नेशनल पार्क के अधिकारियों के पास आदिवासियों को समझाने के अलावा कोई चारा नहीं है। इन दिनों भी नेशनल पार्क प्रबंधन द्वारा आदिवासी समुदायों से संवाद करके उन्हें समझाइश दी जा रही है तथा जागरूकता फैलाकर अंधविश्वास में न पडऩे की सलाह दी जा रही है। बावजूद इसके आग लगने की घटनाएं रुक नहीं रहीं। विशेषज्ञों का कहना है कि पहले भी कूनो में इन घटनाओं के कारण परेशानी थी और आदिवासियों की काउंसिलिंग की गई थी, किंतु स्थितियां बदली नहीं।

देश के कई हिस्सों में अलग अलग मान्यतायें


कूनो नेशनल पार्क के आसपास बसे आदिवासियों में मान्यता है कि पहाड़ी क्षेत्र व जंगल में आग लगाने से बिगड़ा हुआ काम व बोला हुआ काम पूरा हो जाएगा। राजस्थान के बांसवाड़ा में आदिवासी बहुल क्षेत्र में मान्यता है कि संतान सुख के लिए जंगल में आग लगाई जाती है। गुजरात के भरूच में आदिवासी पहाड़ की पूजा करते हैं इसलिए दीपक जलाते हैं, इससे आगजनी की घटनाएं हो जाती हैं।